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गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी है उर्दू- डीएम श्याम बिहारी मीणा

उर्दू निदेशालय मंत्रिमंडल सचिवालय, बिहार पटना द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के तहत शुक्रवार जिला मुख्यालय के भूपेन्द्र स्मृति कला भवन में फरोग-ए-उर्दू सेमिनार, कार्यशाला व मुशायरा का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन डीएम श्याम बिहारी मीणा (भाप्रसे) एवं समाजसेवी-साहित्यकार डॉ भूपेन्द्र मधेपुरी ने उर्दू भाषा कोषांग के प्रभारी पदाधिकारी मोहम्मद कबीर, विशेष पदाधिकारी बिरजू दास, समाजसेवी शौकत अली आदि की मौजूदगी में दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

सर्वप्रथम जनाब मोहम्मद कबीर ने कार्यक्रम में आए सभी गणमान्य-शायरों, डेलीगेट्सों एवं छात्र-छात्राओं का इस्तकबाल करते हुए उर्दू भाषा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सरकार की भागीदारी एवं अपनी जिम्मेदारी को समझने हेतु किए जा रहे प्रयासों का संपूर्णता में उल्लेख किया।

डायनेमिक डीएम मीणा ने उर्दू को दिल्ली एवं लाहौर की गलियों में परवान चढ़ने वाली जुबान बताते हुए गंगा-जमुनी तहजीब को उर्दू की निशानी बताया। उन्होंने विस्तार से कहा कि कभी उर्दू पूरे भारत की भाषा बन गई थी और लोगों के दिलों में छा गई थी। उन्होंने बच्चों को उर्दू सीखने हेतु प्रेरित भी किया।

समाजसेवी-शिक्षाविद् डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि उर्दू किसी खास मजहब की जुबान नहीं है। उर्दू हिंदुस्तानी भाषा है और है ज्ञान शक्ति भी। पश्चिमी यूपी, पंजाब व हरियाणा में बोली जाने वाली खड़ी बोली से निकली है उर्दू, जिसका प्रचार-प्रसार सूफी संतों ने भी किया। चौदहवीं शताब्दी में सूफी संत दौरम शाह मुस्तकीम मधेपुरा आए और यही के हो गए। इन्हीं के नाम ‘दौरम’ को ‘मधेपुरा स्टेशन’  के साथ जोड़कर ढेर सारी  समस्याओं को सुलझा ली गई। डॉ.मधेपुरी ने कहा कि ‘दौराम मधेपुरा’ स्टेशन तो गंगा-जमुनी तहजीब का जीता जागता उदाहरण है।

अंत में उद्गार व्यक्त करते हुए मोहम्मद शौकत अली ने कहा कि हिन्दी-उर्दू सगी बहने हैं। मौके पर निहाल अहमद, अनीस अफजल, सीडीपीओ शबाना परवीन, परवेज अख्तर, फुरकान अंसारी, अनवारूल हक आदि मौजूद थे। समारोह का संचालन शौकत अली ने किया।

 

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