भारत की आजादी के लिए न जाने कितने किशोर अपने प्राण न्योछावर कर दिए, फिर भी उनका जिक्र युवाओं के बीच में खुदीराम बोस की तरह जमकर नहीं हो पाता है। वैसे ही नामों में एक नाम है कोसी अंचल के शहीद चुल्हाय यादव का, जो 15 जनवरी 1920 को जन्म लिए और 30 जनवरी 1943 को महज 23 वर्ष की उम्र में आजादी की खातिर शहीद हो गए। जिनके लिए क्रांति गाथा के कवि डाॅ.जीपी शर्मा की पंक्तियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्कूली बच्चों के बीच समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने यूं सुनाया-
प्रखर ग्राम मनहरा सुखासन फूलचंद थे एक किसान।
उनका पुत्र चुल्हाई यादव ने रखा धरती का मान।।
मधेपुरा में बीच सड़क पर सत्याग्रही युवक को मार।
गौरों ने सुरपुर पहुंचाया गई अहिंसा सचमुच हार।।
कंठ-कंठ में आज चुल्हाई की उज्जवल गौरव गाथा।
इस शहीद ने किया कौशिकी अंचल का ऊंचा माथा।।
डॉ.मधेपुरी ने कहा कि अपने अतीत को जाने बिना कोई भी आदमी ना तो अपने भविष्य को गढ़ सकता है और न वर्तमान में एक कदम आगे बढ़ सकता है। उन्होंने कहा कि नेपाल के जंगल में जेपी-लोहिया ने तय किया कि 26 जनवरी को सभी क्रांतिकारी अपने-अपने मुख्यालयों में तिरंगा फहराएंगे। इसी क्रम में शिवनंदन प्रसाद मंडल, भूपेन्द्र नारायण मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल, राम बहादुर सिंह….. सरीखे क्रांतिकारियों की बैठक 25 जनवरी, 1943 की रात में आयोजित की गई।
बैठक में जब चुल्हाय कहते हैं कि वे सबसे छोटे हैं, इसलिए उन्हें ही भारत माता की जयघोष के साथ तिरंगा फहराने का अवसर दिया जाए…. और वैसा ही हुआ। ब्रिटिश सिपाही उन्हें तिरंगा फहराते पकड़ लिया और घसीटते हुए ले जाकर वृक्ष से लटका कर इस कदर पीटा कि 30 जनवरी को 23 वर्षीय चुल्हाय शहीद हो गये। उनको सम्मानित करने के लिए समाजसेवी डॉ.मधेपुरी के प्रयास से 30 जनवरी, 2015 में डाक बंगला सड़क का नाम “शहीद चुल्हाय मार्ग” किया गया।