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पद्मश्री फूलबासन बाई यादव ने केबीसी कर्मवीर में जीती 50 लाख

पढ़ा-लिखा या कम पढ़ा-लिखा या फिर अनपढ़ व्यक्ति ही क्यों ना हो, यदि वह कुछ करने की ठान लेता है तो उसे किसी भी ऊंचाई तक जाने में पहाड़ भी नहीं रोक सकता। पांचवी पास महिला फूलबासन बाई यादव की यह कहानी किसी मिसाल से कम नहीं है।

बता दें कि कभी छत्तीसगढ़ के अपने गांव में भूखे-प्यासे बकरी चराने वाली फूलबासन अपनी लगन, मेहनत और  संकल्प के बल पर “मां बमलेश्वरी स्व सहायता समूह” संस्थान का अध्यक्ष बन 10 महिलाओं से 2001 में कार्य आरंभ करती है और आज उसी महिला समूह में 2 लाख से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं। वह नारी सशक्तिकरण का एक अच्छा मिसाल पेश कर रही है। दो मुट्ठी चावल से शुरू किया गया यह महिला समूह आज करोड़ों में कमाई कर रही है।

जानिए कि उसी फूलबासन यादव को भारत सरकार ने 2012 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया, छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘जनाना सुरक्षा योजना’ का ब्रांड एंबेस्डर बनाया और 2014 में श्रीमती यादव को ‘महावीर फाउंडेशन पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। फिलहाल फूलबासन बाई यादव ‘पहरेदारी’, ‘नशा मुक्ति’ व ‘खुले में शौच बन्दी’ के ऊपर तूफानी अभियान चला रही है।

ऐसी संकल्पयुक्त फूलबासन को सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने केबीसी कर्मवीर में एक्ट्रेस रेणुका शहाणे को सहयोगी बनाकर मौका दिया और दोनों ने अपनी बुद्धिमत्ता से वो कर दिखाया कि फूलबासन यादव 50 लाख जीतने वाली इस सीजन की पहली कंटेस्टेंट बनी। छत्तीसगढ़ के जिला राजनंदगांव के छोटे कस्बे सुकुलदैहान की अद्भुत संकल्पी फूलबासन ने केबीसी के महानायक से कहा कि 13 साल की उम्र में वह ससुराल आ गई और कई दिनों तक ससुराल में भी भूखे सोना पड़ा। गरीबी के बीच होते हुए भी कुछ करने की इच्छा मन में जागी और महिला समूह की शुरुआत की। सबसे पहला काम यही किया फुलबासन ने कि सभी महिलाओं के अंदर से भय के भूत को भगाया और काम करने की लगन पैदा की। उसी मेहनत और लगन के चलते फूलबासन अपने स्व सहायता समूह द्वारा आज डेयरी, बकरी पालन, मछली पालन एवं खाद् कंपनी आदि चला रही है और लाखों महिलाओं को रोजगार दे रही है।

चलते-चलते, फूलबासन बारंबार यह कहती रही कि गुलाबी साड़ी वाली इन महिलाओं की जिंदगी आरंभ में गुलाब की ही तरह कांटो के बीच पल रही थी। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के ‘केबीसी कर्मवीर’ को अनिवार्य रूप से देखने वाले समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने फूलबासन बाई की बातों को सुनकर उनकी सराहना की और उनके फैन हो गए। मधेपुरा के महानायक डॉ.मधेपुरी, जो जिले के कर्मवीरों को सदा सम्मानित करते रहे हैं, द्वारा लगे हाथ 107 वर्षीया वृक्ष माता पद्मश्री एस.थिमक्का की चर्चाएं भी बच्चों के बीच विस्तार से की गई। उन्होंने कहा कि कर्नाटक की थिमक्का संतानहीन होने के कारण वृक्षों के साथ मां-बेटे की तरह अटूट रिश्ता कायम करने में आज भी लगी है।

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