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डॉ. नवल के निधन से शोक में डूबा साहित्य-जगत

हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. नंदकिशोर नवल का मंगलवार रात निधन हो गया। वे कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। 83 वर्षीय डॉ. नवल पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक रह चुके थे। उनका जन्म 2 सितंबर 1937 को वैशाली जिले के चांदपुरा में हुआ था।
डॉ. नवल ने हिन्दी साहित्य को अपनी दर्जनों महत्वपूर्ण पुस्तकों से समृद्ध किया। कविता की मुक्ति, हिन्दी आलोचना का विकास, शताब्दी की कविताएं, समकालीन काव्य-यात्रा, कविता के आर-पार आदि उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उन्होंने निराला रचनावली तथा दिनकर रचनावली का संपादन भी किया था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉ. नवल के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उनके निधन से हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
डॉ. नवल के निधन से साहित्य-जगत जैसे शोक में डूब गया। मधेपुरा के साहित्यप्रेमी भी उनके निधन से मर्माहत हैं। पूर्व सांसद, बीएनएमयू के संस्थापक कुलपति व दर्जनों पुस्तकों के रचयिता डॉ. आर. के. यादव रवि, कोसी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ एवं मधेपुरा के कलाम कहे जाने वाले समाजसेवी-साहित्यकार डॉ. भूपेन्द्र मधेपुरी ने संयुक्त शोक-संदेश जारी कर कहा कि डॉ. नंदकिशोर नवल जी ने आजीवन साहित्य की जैसी साधना की उसकी कोई सानी नहीं है। आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने जो स्थान बनाया था उसकी भरपाई संभव दिखाई नहीं पड़ती।
जदयू मीडिया सेल के प्रदेश अध्यक्ष व साहित्यकार डॉ. अमरदीप ने कहा कि डॉ. नवल अपनी बात को जिस शैली में और जितनी बेबाकी से रखते थे उसके लिए वे सदैव याद किए जाएंगे और उनका रचा वांग्मय आने वाली कई पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।

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