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बदहाल लिफ्ट पर बदतर राजनीति

Amit Shah in Lift

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष… जेड श्रेणी की सुरक्षा… राजधानी पटना के स्टेट गेस्ट हाउस जैसा स्थान… फिर भी लिफ्ट खराब… और उसमें फंस जाते हैं अमित शाह..! चलिए मान लिया कि मशीन है, कभी भी खराब हो सकती है, तो क्या फंसे हुए व्यक्ति को निकालने में 40 मिनट लग जाएंगे..? और तो और, क्या इतने हाई प्रोफाइल व्यक्ति के फंसने की जानकारी भी तब होगी जब वो स्वयं अपने फंसने की सूचना देंगे..? इतनी महत्वपूर्ण जगह पर एक लिफ्टमैन तक नहीं होगा..? सचमुच बहुत शर्मनाक, बहुत चिन्ताजनक और बहुत हैरतअंगेज बात है ये..!

जी हाँ, शर्म, चिन्ता और हैरत होती है ऐसे पद और कद के व्यक्ति की लचर सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर, बिहार के सरकारी तंत्र में व्याप्त अव्यवस्था को लेकर और सबसे अधिक नेताओं के खत्म हो चुके विवेक और शिष्टाचार को लेकर..! चलिए बताते हैं कैसे..!

ये घटना 20 अगस्त की रात की है। अमित शाह पटना में थे और एक समाचारपत्र के कार्यक्रम में भाग लेकर स्टेट गेस्ट हाउस आए थे। वहीं रात के करीब 11.30 बजे पहले तल पर जाते हुए वे लिफ्ट में फंस गए। उस वक्त उनके साथ बिहार भाजपा प्रभारी भूपेन्द्र यादव समेत कुल छह लोग थे। लिफ्ट में वे पूरे चालीस मिनट तक फंसे रहे। इस बीच अफरा-तफरी मची रही और अन्त में भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें लिफ्ट तोड़कर बाहर निकाला।

लेकिन जनाब यहीं बस नहीं हुआ। इसके बाद इस घटना पर नेताओं के बयान आने शुरू हुए। जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा कि लिफ्ट को पता नहीं था कि उसमें अमित शाह चढ़े हैं, वरना वो ऐसा नहीं करती। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने तो हद ही कर दी। उन्होंने बिहार में लिफ्ट छोटे होने की बात की और कह दिया कि इतने मोटे शख्स को लिफ्ट में चढ़ना ही नहीं चाहिए। दूसरी ओर भाजपा इस घटना को राज्य सरकार की साजिश बता रही है।

पहली बात तो ये कि शायद ही कोई सरकार इस हद तक गिरकर कोई साजिश करेगी। भाजपा की इस प्रतिक्रिया में भी राजनीति है लेकिन वो उतनी चिन्ता की बात नहीं जितनी जेडीयू और राजद का इस घटना का मखौल उड़ाना। दोनों पार्टियों की ओर से इस तरह का बयान आना उनकी संवेदनशून्यता का परिचायक है। क्या अब राजनीति के पीछे सामान्य शिष्टाचार की भी बलि चढ़ा दी जाएगी..! राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा में क्या विवेक को भी पैरों तले रौंद दिया जाएगा..!

जेडीयू अभी सरकार में है। सरकारी भवन की अव्यव्स्था के लिए पार्टी को शर्मिन्दा होना चाहिए था और व्यंग्य करने की जगह खेद व्यक्त करऩा चाहिए था। लालू प्रसाद आज बिहार में लिफ्ट छोटे होने की बात कह रहे हैं तो उन्हें ये भी कहना चाहिए था कि पन्द्रह साल सरकार में रहते उन्होंने लिफ्ट को बड़ा करने के लिए क्या किया। ये नहीं कहते तो ना सही उन्हें किसी के मोटे या पतले होने पर मजाक उड़ाने का हक तो कम-से-कम नहीं ही था।

राजनीति अपनी जगह है और शिष्टाचार अपनी जगह। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप होते हैं, होने ही चाहिएं। सहमति-असहमति होती है, होनी ही चाहिए। सब कुछ हो लेकिन विवेक के दायरे में। राजनीति बड़ी चीज है लेकिन मनुष्यता सबसे बड़ी चीज है, ये हमें हर हाल में याद रखना चाहिए।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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