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आखिर ज्योतिरादित्य ने अलग कर ही ली अपनी राह

Congress Leaders Jyotiraditya Scindia at a party press conference in the capital New Delhi on tuesday. Express Photo by Tashi Tobgyal New Delhi 160517 *** Local Caption *** Congress Leaders Jyotiraditya Scindia at a party press conference in the capital New Delhi on tuesday. Express Photo by Tashi Tobgyal New Delhi 160517

मध्यप्रदेश में आंतरिक कलह और वर्चस्व की लड़ाई की शिकार कांग्रेस आखिरकार बिखर ही गई। पार्टी के भीतर लगातार उपेक्षा के शिकार हो रहे ज्योतिरादित्य ने वहां कमलनाथ सरकार की जड़ें हिला दीं। यही नहीं, अब उनके भाजपा में जाने की खबर है। पार्टी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। चर्चा तो यह भी है कि राज्यसभा चुनाव के ठीक बाद उन्हें मोदी सरकार में मंत्री भी बनाया जा सकता है।

बता दें कि ज्योतिरादित्य मंगलवार सुबह करीब 10:45 बजे गुजरात भवन पहुंचे। यहां से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उन्हें अपने साथ 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास लेकर गए, जहां शाह की मौजूदगी में सिंधिया की प्रधानमंत्री से करीब घंटेभर बातचीत हुई। फिर शाह की ही कार में सिंधिया गुजरात भवन लौटे। इस मुलाकात के बाद दोपहर 12.10 बजे उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफे की चिट्ठी ट्वीट कर दी, जो सोमवार, यानी 9 मार्च को ही लिख ली गई थी।

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने सिंधिया का प्रचार के मुख्य चेहरे के रूप में इस्तेमाल किया था, लेकिन सीएम पद की दौड़ में वे पिछड़ गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी उनका नाम आगे रहा, लेकिन पद नहीं मिला। अटकलें थीं कि वे डिप्टी सीएम बनाए जा सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उपेक्षा का दौर यहीं नहीं रुका, खबर यह भी है कि सिंधिया ने चार इमली में बी-17 बंगला मांगा, लेकिन वह कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को दे दिया गया। रही-सही कसर भी तब पूरी हो गई जब 14 फरवरी को टीकमगढ़ में अतिथि विद्वानों की मांगों पर ज्योतिरादित्य ने कहा कि यदि वचन पत्र की मांग पूरी नहीं हुई तो वे सड़क पर उतरेंगे। इस पर कमलनाथ ने टका सा जवाब दिया कि ऐसा है तो उतर जाएं। इसी के बाद तल्खी और बढ़ गई और इतनी बढ़ी कि मौजूदा शक्ल अख्तियार कर ली। यह भी याद दिला दें कि करीब 4 महीने पहले 25 नवंबर 2019 को ही ज्योतिरादित्य ने ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल से कांग्रेस का नाम हटा दिया था। इसकी जगह उन्होंने स्वयं को केवल जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी बताया था।

एक ओर पृष्ठभूमि में इतनी बातें थीं हीं। ज्योतिरादित्य के सामने एक तरह से अस्तित्व का संकट था। ऐसे में राज्यसभा चुनाव आ गया। मध्यप्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों में से 2 पर उसके उम्मीदवारों का जीतना तय था। दिग्विजय की उम्मीदवारी पक्की थी। दूसरा नाम ज्योतिरादित्य का सामने आया। बताया जा रहा है कि यहां भी उनके नाम पर कमलनाथ अड़ंगे लगा रहे थे। इसी से ज्योतिरादित्य नाराज थे। इसके बाद 9 मार्च को जब प्रदेश के हालात पर चर्चा के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मिलने दिल्ली पहुंचे थे, तभी 6 मंत्रियों समेत सिंधिया गुट के 17 विधायक बेंगलुरु चले गए थे। इससे साफ हो गया कि सिंधिया अपनी राहें अलग करने जा रहे हैं। बहरहाल, उनके भाजपा में शामिल होने की विधिवत घोषणा भी अब हो ही जाएगी। उधर कमलनाथ अपने तरकश से कौन-कौन से तीर निकालते हैं और कांग्रेस सरकार की डूबती दिख रही नाव को किस तरह पार लगाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे वे ऐसा कर पाएंगे, इस पर मौजूदा स्थिति में यकीन कर पाना मुश्किल लगता है।

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